ग़ालिब - सुख़न से आगे
श्रेय- विकिमीडिया हैं और भी दुनिया में सुख़नवर बहुत अच्छे कहते हैं ग़ालिब का है अन्दाज़ - ए - बयाँ और महज़ हिन्दुस्तान ही नहीं , पूरी दुनिया की उर्दू फ़ारसी शाइरी में ग़ालिब एक मील का पत्थर हैं। इन ज़बानों को पसन्द करने वाला शायद ही कोई हो , जो ग़ालिब को नहीं जानता। ग़ालिब ख़ुद भी यही बात कहते थे , कि दुनिया हमको भले अभी कोई तवज्जो न दे , लेकिन हमारे मरने के बाद हमारे शेर गुनगुनाए जाएँगे। आज हम बात करेंगे उर्दू और फ़ारसी के महबूब शायर , मिर्ज़ा असदुल्लाह बेग खाँ उर्फ़ ग़ालिब की। श्रेय- विकिमीडिया मिर्ज़ा मूलतः मुग़लों के खानदान से ताल्लुक़ रखते हैं। जब तुर्की में सेजलुक राजाओं का अन्त हो रहा था , तो उनके पूर्वज उज़बेकिस्तान से समरकन्द आ गए। समरकन्द में जिस वक़्त अहमद शाह का राज था , उसी दौर में ग़ालिब के दादा मिर्ज़ा क़ोक़न बेग तत्कालीन भारत में आए। लाहौर , दिल्ली और जयपुर में उन्होंने काम किया और आख़िर में दिल्ली के नज़दीक आगरा में बस