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Showing posts from 2016

Trees

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शज़र मैं उन हज़ारों खुशबुओं की नज़्म हूँ जो मेरे घर के बुज़ुर्गों की रोपी हुई है लफ़्ज़ मेरे दादा जी ने सिखलाए हैं मुझे और एहसास-ए-अमानत मेरी दादी ने सौंपी हुई है। मेरा कहना, मेरा सुनना, या ये मेरी शायरी उसमें जो अच्छा है, वो उन्हीं का हिस्सा है मेरी पसंद, नापसंद, या मेरी ये कहानियाँ कुछ पुरानी बात है, कुछ उनका किस्सा है। मुझे फ़ख्र है घर के उन शज़रों पर मेरा वज़ूद हैं ये, मेरी पहचान हैं ये जिनकी शागिर्दी में ये शाख महकने लगती है वो शाख हूँ मैं और मेरी जान हैं ये। Comment what you think about this poem... मंगलम् भारत BManglam.blogspot.in

ISIS thriving in INDIA

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भारत में पनपता ISIS      मैं ये लेख उस वक़्त लिख रहा हूँ, जब भारत एक आग से धधक रहा है। ये आग दुष्यंत कुमार की आग, ‘ हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिये ’ से बिल्कुल भी संबंधित नहीं है। ट्विटर पर, फ़ेसबुक पर, व्हॉट्सएप्प पर जनता के भीतर एक अजब किस्म का आक्रोश है ; सामने वाले को ख़त्म कर देने का आक्रोश, सामने वाले को अपनी बात कहने से पहले ही उसकी जान ले लेने का आक्रोश। और ये आक्रोश, व्यक्ति की प्रसिद्धि, उसके स्टेटस और उस व्यक्ति का किस व्यक्ति के विरोध में स्वर है ; पर निर्भर है। टीवी चैनल की बाइटों में एक व्यक्ति के दाँतों से किटकिटाती आवाज़ का स्वर और कही गई बात- ‘ अगर फलाँ नेता मेरे हाथ लग जाए, तो मैं अभी उसे मौत के घाट उतार दूँ ’ , या फिर ‘ फलाँ नेता पर तो जूते चप्पल चलने चाहिये ’ । स्याही फेंकने, जूता फेंकने, थप्पड़ मारने से अगर स्वराज आता तो नए 2000 के नोटों में गाँधी की तस्वीर की जगह गोलियाँ हाथ में लिये गोडसे होते। आपको पता है, कौन लोग हैं ये या किस विचारधारा से आते हैं ? ये उस विचारधारा से आते हैं, जिस विचारधारा से निर्भया काण्ड करने वाले अपराधी आते हैं। इनके अंद

Is the pace of Growth and Development determined by the Quality of Governance?

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क्या विकास और प्रगति की गति, शासन की गुणवत्ता पर निर्भर करती है ? बदल रही है ज़िन्दगी, साल बदल रहे हैं। बदल रहा है देश, यहाँ के हाल बदल रहे हैं। लेकिन नहीं बदल रहे हमारे सामने, कुछ पुराने बवाल आज भी हैं। ज़िन्दगी तो गुज़र रही है रफ़्ता रफ़्ता, लेकिन कुछ तीख़े सवाल आज भी हैं।             पिछले सत्तर सालों में भारत में होने वाले परिवर्तन का सीधा असर हमारी विचारधाराओं से होता हुआ चर्चाओं और बहसों तक हुआ है। आज से दस साल पहले, बीस साल पहले हम चर्चा किया करते थे कि क्या गरीबी सच में कम हुई ? क्या प्रशासन अपना काम नहीं कर रहा है ? लेकिन आज हम उस मुहाने पर खड़े हैं, जहाँ से विकास और प्रगति का पथ प्रशस्त होता साफ़ दृष्टिगोचर होता है।       अगर आप मुझसे पूछिये कि क्या विकास और प्रगति की गति, शासन की गुणवत्ता पर निर्भर करती है ? तो मैं कहूँगा हाँ, निश्चित रूप से ; विकास व प्रगति तय करने में शासन का महत्त्वपूर्ण योगदान है।       लेकिन मैं आपसे पूछना चाहता हूँ, कि क्या सिर्फ़ शासन की गुणवत्ता सुधार कर विकास एवं प्रगति संभव है ? नहीं, बिल्कुल भी नहीं, कदापि नहीं।     

Does Religion Defy Rationality???

क्या धर्म बौद्धिकता की अवहेलना करता है ?       भगवान श्रीकृष्ण गीता में अर्जुन से कहते हैं, साधुजनों के उद्धार के लिये, दुष्कर्म करने वालों का विनाश करने के लिये और धर्म की स्थापना के लिये मैं पल-पल में प्रकट होता हूँ।       मैं पूरे विषय को केवल दो पंक्तियों में समाप्त कर सकता हूँ। अगर आप मेरे हिन्दू होने, इनके मुसलमान होने, किसी अन्य के सिख होने को धर्म मानते हैं तो हाँ, निश्चित रूप से धर्म, बौद्धिकता की अवहेलना करता है। परन्तु, यदि आप उस व्यवस्था ; जिससे होकर प्रत्येक जन वैराग्य को प्राप्त करते हैं, को धर्म मानते हैं तो निश्चित रूप से धर्म, बौद्धिकता की अवहेलना नहीं करता। इसलिये प्रमुख विषय यह नहीं है, कि धर्म बौद्धिकता की अवहेलना करता है या नहीं। प्रमुख विषय यह है कि आप धर्म की संज्ञा क्या लेते हैं ?       साथियों ! अवहेलना की समस्या तब पैदा होती है, जब संवाद की संभावनाएँ समाप्त हो जाती हैं, तर्कों पर वाद-विवाद खत्म हो जाता है और अपनी नीतियों को धर्म का नाम बताकर मानव समाज पर थोपना प्रारंभ हो जाता है।       कुछ समय पहले की ही घटना है, कश्मीर की तीन लड़कियाँ थीं, किसी ए

Violence in Modern Society

समकालीन दुनिया में हिंसा “ हिंसा से निर्मित भूसंस्कृति, मानवीय होगी न, मुझे भय ”             महात्मा गांधी की विचारधारा से भरी यह प्रेरक पंक्ति भारत की वैचारिक और मौलिक स्थिति तथा नवीन भारत में कार्य करने से पहले होने वाली असमंजसता को प्रस्तुत करती है और विचार  करने पर मजबूर करती है। प्रस्तुत समय, भारत के लिये विचार विभेद में संघर्ष तथा छटपटाहट के साथ जवाबदेही का है। पाकिस्तान की ओर से होती गोलीबारी और उसका प्रत्युत्तर, बाद में उरी हमले में सेना की कार्रवाई से एक ओर भारत के शौर्य का दर्शन होता है, वहीं दूसरी ओर नेहरू द्वारा दिये गए पंचशील सिद्धान्तों पर भी कुठाराघात होता है। प्रस्तुत दो विषयों में से किसी एक विषय की राह पकड़ना भारत के लिये कदापि सरल नहीं है। एक दिशा तो वह है, जो भारत की संस्कृति को बताती है ; दूसरी वह है जो ताकत को बताती है। भारत की संस्कृति में अहिंसा का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य की बात करें, या फिर भारत में जन्मे अन्य धर्मों की, सभी में अहिंसा का मार्ग ही सत्य का मार्ग बताया गया है।       अब चर्चा करते हैं समका

Video of Manglam at Matrika Auditorium in Kavi Sammelan

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At Matrika Auditorium in Kavi Sammelan

Creation by God, Men and Women.

There is a story behind the origin of the world. When lord created man and took rest for some time, then lord created women. After that, neither lord took rest, nor men. That is a false story, there is a truth beyond that. जब विधाता ने खुश हो, धरती पर पुरुष बनाया था। अपनी इस सुन्दर रचना पर, मन ही मन हर्षाया था।। वज्र शरीर, सिंह सी बाँहें, मिली पुरुष को शक्ति अपार। ताकत बल कौशल क्षमता से पा सकता था सकल संसार।। अपनी इस ताकत क्षमता का, करने लगा वह दुरुपयोग। समग्र धरती का विनाश कर शुरू कर दिया पूर्णभोग।। उसी पुरुष को सबक सिखाने, रोकने हर कलाकारी को। विधाता ने तब जन्म दे दिया, स्वर्ग से सुन्दर नारी को।। कोमल हाथ, नयन मृग, मादक, सुन्दर मन संग भोलापन। हाय पुरुष ख़ुद को खो बैठा, पा करके उसका दर्शन।। वाद विवाद में चतुर थी नारी, पुरुष को टक्कर देती थी। कभी हारती पुरुष से जब, तब आँसू से हर लेती थी।। नारी की चालों से नर, अपने चौसर पर छल जाता। खीझ के सर को खुजलाता, ख़ुद से ख़ुद पर वह झल्लाता।। लेकिन इस कठोर दुनिया में, प्रपंच व छल भी होता

Love Poetry at mid night

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Love Poetry पहला इश्क जो होता है, बस हो ही जाता है। मन ख्वाबों में जो खोता है, बस खो ही जाता है। रातों में, बातों में, कलम को थामे हाथों में। बस ज़िक्र तुम्हारा होता है। आख़िर ये क्यों होता है। तुम बिन मन क्यों रोता है। मैंने तो बड़ों से सीखा है, कि विरह प्रेम का अवयव है। जो इनसे लड़कर जीत गया, वही तो सच में मानव है।। पर रातों के काले सन्नाटे,       तेरी आवाज़ सुनाते हैं। चाँद पे बादल के घेरे,  तेरा चेहरा दिखलाते हैं। जब अन्दर का खालीपन,       अन्तर को अन्दर से डँसता है। इनको पाकर हम जो लिख दें,       वो महफ़िल को बतलाते हैं। वो सहज हँसी, वो अल्हड़पन,       तिरछी नज़रें, वो पागलपन। मेरे मन का मानव भी,       तुमको पाकर ज्यों खोता है।       बस ज़िक्र तुम्हारा होता है।       बस ज़िक्र तुम्हारा होता है।।       मंगलम् भारत BManglam.blogspot.in

Submission on Sustainable Development Goals adopted by United Nations in Sept. 2015 in IIPM (Indian Institute of Public Administration).

संयुक्त  राष्ट्र  संघ  द्वारा  सितंबर  2015  में  गए  अपनाए  संपोषित  विकास  के  लक्ष्य       पिछले  कुछ  दशकों  में  विश्व  ने  विकास  के  नए  कीर्तिमान  रचे  हैं।  आज  भारत  के  साथ  समस्त  विश्व  वैसा  नहीं  रहा,  जैसा  19वीं  सदी  में  हुआ  करता  था।  तब  हमारे  पास  न  रात  के  वक़्त  बल्ब  था,  न  बात  करने  के  लिये  फ़ोन  और  न  ही  गर्मी  से  बचने  के  लिये  कूलर।  इस  काल  में  विज्ञान  और  तक़नीकी  ने  जो  प्रगति  की  है,  वह  निश्चित  रूप  से  प्रशंसा  के  योग्य  है ;   परन्तु  इसी  काल  में  जनसंख्या  वृद्धि  का  विस्फोट  और  प्रकृति  का  अत्यधिक  संदोहन  पूरे  विश्व  में  चिंता  का  कारण  बना  हुआ  है।  सात  बिलियन  की  जनसंख्या  के  लिये  रहने  को  ज़मीन,  खाने  को  भोजन  और  पीने  को  पानी  जुटाने  के  लिये  कंपनियाँ  इस  धरती  का  दुरुपयोग  कर  रही  हैं।  एक  वैज्ञानिक  के  अनुसार  अगले  100  वर्षों  में  मनुष्य  का  अस्तित्व  भी  संकट  में  नज़र  आ  रहा  है।  प्रत्येक  राष्ट्र  की  सरकार  के  साझा  संवाद  से  संयुक्त  राष्ट्र  को  17  ऐसे  बिन्दु  मिले,  जिन