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एक शख़्स है... मैं उसके पास हर कुछ दिन में मिलने चला जाता हूँ।

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आज मैं आपको एक शख़्स की कहानी सुनाने वाला हूँ। एक शख़्स है... मैं उसके पास हर कुछ दिन में मिलने चला जाता हूँ। आप उसे ठीक उतना ही जानते हैं, जितना मैं। कभी रात के 2 बजे जब कभी मेरी नींद उचट जाती है, तो कभी-कभी मैं उसके बारे में सोचता हूँ। किसी ज़माने में वो बहुत प्रसिद्ध था, लेकिन शायद ही उसको इस बात का घमंड कभी रहा होगा। पढ़ा लिखा भी है। इंसान को इतना तो पढ़ लिख लेना चाहिए, कि उसके भीतर का घमण्ड ख़त्म हो जाए। अगर इतना नहीं पढ़ा, तो फिर क्या ही पढ़ा। मैं जब भी उसके पास जाता हूँ, तो मुझे भी उसके जानकार होने का एहसास होता है। ऐसे लोग होते हैं न, जो भीतर ढेर सारा प्रेम छिपाए रहते हैं, पर कहते एक शब्द नहीं... ऐसे लोग, जिनसे कई बार बात करने पर आपको लगता है कि बस एनलाइटेनमेंट ही मिल गया हमको, मौन मुस्कान वाले लोग... गहरे... सागर जैसे। एक ऐसा शख़्स, जो किसी ईश्वर (या कुछ और) को नहीं मानता, हाँ शिव का भक्त ज़रूर है। मुझे यक़ीन है कि शिव को भी उसने भगवान जैसा नहीं देखा होगा, बल्कि वो उस गूढ़ संरचना को समझने की कोशिश में रहा होगा, जिसको जानने के बाद किसी ने कुछ ऐसा देखा, जिसका नाम उसने शिव रखा। श...