प्रोफ़ और स्टूडेण्ट के बीच पिस रहे हो, तो CR हो तुम।
व्यथा, CR की
गैंग्स ऑफ़ वासेपुर में ‘तेरी कह के लूँगा’ वाली लाइन पर पब्लिक ने खूब तालियाँ मारीं, लेकिन क्लास के CR की बात आए तो मुहावरा थोड़ा सा बदलकर ‘तेरी पूछ के लूँगा’ हो जाता है।
‘तो ज़िन्दा हो तुम’ वाले जावेद अख़्तर साहब को CR पर लिखने के लिये कहा जाता तो शायद कुछ यूँ लिखते।
प्रोफ़ और स्टूडेण्ट के बीच पिस रहे हो, तो CR हो तुम।
HOD संग meeting में ख़ुद को घिस रहे हो, तो CR हो तुम।।
ख़त्म हो चुके हो तुम, प्रोफ़ तक असाइनमेंट पहुँचाने में।
दिन गुज़रता
है तुम्हारा, क्लास को शिफ़्ट कराने में।।
चाहे हो मासबंक या SHORTAGE, फँसते हो तुम।
50 बच्चे, 10
प्रोफ़, 1 HOD से कैसे निपटते हो तुम।।
हर वक़्त परेशानी में हँस रहे हो, तो CR हो तुम।
प्रोफ़ और
स्टूडेण्ट के बीच पिस रहे हो, तो CR हो तुम।।
CR का जन्म होता नहीं, किया जाता है। ज़बरदस्ती। पूरी क्लास के बच्चे मिलकर एक ऐसे बंदे या बंदी का नाम तय करते हैं, जिसे दुनिया जहान के हर लफड़े को सुनाया जाता है। रात के दो बजे तक वो ये बताता है कि कल क्लास की टाइमिंग क्या है और सुबह आठ बजे उसकी नींद प्रोफ़. की कॉल से टूटती है कि क्लास को शिफ़्ट करना पड़ेगा। तो गुरू, यहाँ से शुरू होकर assignment, lab के minor, proxy, shortage बचा ले भाई, exams और जो यूनिवर्सिटी की तरफ़ से बाहर गए थे; उनकी समस्याओं का सारा बोझ CR के ऊपर आता है। इस चक्कर में वो Department के चक्कर लगाता रहता है, लगाता रहता है, लगाता रहता है। वो भी बिल्कुल फ़्री, फ़्री, फ़्री।
मुझे पहले लगता था, कि CR बनना ज़िम्मेदारी का काम है, लेकिन ज़िम्मेदारी से ज़्यादा जोखिम का काम है। अगर मैं कभी मंत्री बना, तो स्पेशल कोटे से कुछ हज़ार करोड़ CR मेहनताना योजना में दूँगा (Don’t take me seriously...)।
इसलिये
दोस्तों, मैं जब भी किसी CR से मिलता हूँ, तो उसे गले लगा लेता हूँ।
क्योंकि उसकी क्लास वालों ने बहुत ली है उसकी, कह के नहीं, बल्कि पूछ-पूछ के।
बिज़ी हो गए हैं हम, इसलिये लेख छोटा है। कभी और लिखेंगे,
तो छाप देंगे।