खुला ख़त, आपकी (ज़ीरो बटे सन्नाटा) इण्टरनेट स्पीड के नाम
खुला ख़त, आपकी (ज़ीरो बटे सन्नाटा) इण्टरनेट स्पीड के नाम
नमस्कार!!! खुला ख़त पिछले कुछ समय से ट्रेंड पर चल रहा है। मुख्यतः ये ख़त किसी (गैर) ज़िम्मेदार संस्था को उससे त्रस्त एक अस्तित्त्वहीन(मान लो) मानुस के बीच संवाद स्थापित करने का साधन होता है, जिसको (गैर) ज़िम्मेदार संस्था को छोड़कर बाकी सब पढ़ लेते हैं। आज अपनी ज़िन्दगी से त्रस्त होकर मैंने भी एक खुला ख़त लिखने की कोशिश की है। प्रतिक्रिया दें।
नमस्कार ! मेरी इण्टरनेट वाली सरकार !
सुबह साढ़े आठ बजे का निकला यह लड़का शाम को साढ़े पाँच बजे (वैधानिक रूप से) अपने रूम पर वापिस आता है। दुनिया भर का हाल देखने के लिये(न्यूज़), थोड़ा सा फ़ेसबुक, थोड़ा सा व्हॉट्सएप्प, ज़्यादा सा यूट्यूब इत्यादि (जो आपके ज़ेहन में है, वो इत्यादि में है) का उपयोग करने के लिये जैसे ही browser खोलता है, घूमती हुई सफ़ेद रंग की घुण्डी आपकी मेहनत का हाल बयाँ कर देती है। मुझे समस्या इस बात से कम है कि इण्टरनेट रुक-रुक कर चल रहा है या नहीं चल रहा है, ज़्यादा इस बात से है कि आप इस समस्या को लेकर उतने सजग नहीं दिखते, जितने दिखने चाहिये। हालाँकि ये सभी बातें किसी और पर भी उतनी ही लागू होनी चाहिये, जितनी आप पर या मुझ पर। आज के समय में इण्टरनेट किसी स्टूडेण्ट की क्लासेस से ज़्यादा महत्त्व रखता है। जिनके पास जियो नहीं है (मेरे जैसे), वो जानते हैं कि इण्टरनेट न हो तो क्या-क्या हो जाता है। आप पर निर्भर काफ़ी सारे लोगों का काम इण्टरनेट के भरोसे चल रहा है। Technology के स्टूडेण्ट्स कई सारे कोर्स इण्टरनेट से ही कर रहे हैं। Due Dates तक सबमिशन न हो, तो उनके सर्टिफिकेट्स तक रुक जाते हैं। और इसका कारण कहीं पर तकनीकी समस्या उतनी ही बचकानी बात लगती है, जितने बचकाने दिल्ली के मुद्दे केन्द्र सरकार के अधीन लगते हैं।
मैं जानता हूँ अपने कई सारे साथियों और सीनियर्स को, इण्टर्नशिप ढूँढने के लिये अभी से मेहनत कर रहे हैं वो। Even Semester हमेशा से ही मेहनत वाला सेमेस्टर होता है क्योंकि समर में कोई राजा बेटा, माँ का लाडला भी घर पर नहीं बैठना चाहता। आपकी अव्यवस्था के कारण सीधा असर इण्टर्नशिप पर पड़ता है। और ये ठीक उसी प्रकार शिक्षा पर हमला है, जितना मासबंक।
लेकिन महोदय ! ये मुद्दा सिर्फ़ शिक्षा से जुड़ा हुआ नहीं है। बहुत सारे लोगों के कार्यक्रम आपके भरोसे चल रहे हैं। किसी का प्यार आपके भरोसे व्हॉट्सएप्प पर अपने पूरे शबाब पर है। मेरे मैसेज का रिप्लाई करना भी उसने शुरू कर दिया है। Typing...। मेरी प्यार में डूबी आँखें ठीक उतनी ही बेकरार हैं, जितना राहुल बाबा पोकेमॉन के लिये। फिर हम दोनों के प्यार में अमरीश पुरी की भूमिका निभाता आपका सिग्नल मेरे साथ तो KKBK (करे कोई, भरे कोई) कर गया ना। सही खेल गए आप भी। काश इस दर्द को कोई संस्था समझ सकती।
मुद्दा इतना हास्यास्पद है नहीं, जितना पिछले पैरा में बताने की कोशिश की गई है। यह उतना ही गंभीर है, जितनी शिक्षा और जितनी व्यवस्था। आपके भरोसे पर कई सारे छोटे-छोटे काम रुके हुए हैं। अगर आपको मेरा लेख पढ़कर थोड़ा सा कर्त्तव्य जगा हो, तो कृपया हमारी समस्या समझने का प्रयास करें। उन लोगों का ख़याल करें, जो लोग आपके भरोसे स्वयं को काउंटर स्ट्राइक का ख़लीफ़ा बोलते नहीं थकते (जो होते हैं, वो बोलते नहीं)। मेरे एक साथी ने अब ऑनलाइन चेस खेलना बन्द कर दिया है।
अगर मैं सच बताऊँ, तो ये लेख लिखने का ख़याल मुझे A Wednesday देखने के बाद आया। लेकिन I am a Sophomore Undergraduate. बम का खर्चा उठा नहीं सकता। और फिर आपके भरोसे पर तो पूरी दुनिया टिकी है। उम्मीद है, आप तक ये खुला ख़त पहुँचा तो आप ज़रूर इस विषय पर सोंचेंगे। तब तक के लिये.......
हम तो आम आदमी हैं जी।