10 रुपए की आरटीआई से रामनाथ गोयनका अवॉर्ड तक- नीलेश मिसरा इंटरव्यू- भाग 1
"मैं अकेला ऐसा विद्यार्थी था, जिसने आईआईएमसी की फाइनल परीक्षा नहीं दी थी, उसके बाद भी संस्थान ने मुझे डिग्री दी।" "रामनाथ गोयनका पुरस्कार की कहानी की शुरूआत महज़ 10 रुपए की आरटीआई से शुरू हुई थी।" पत्रकार से गीतकार और अब गाँव कनेक्शन के संस्थापक सदस्य नीलेश मिस्रा ने साक्षात्कार में कुछ नई बातें साझा कीं। (For English Readers)
साभार- इण्टरनेट |
प्रश्न- 1990 से आप पत्रकारिता के क्षेत्र में हैं। एक पत्रकार होने और अखबार के संचालक होने के रूप में कितना अंतर महसूस करते हैं।
उत्तर- अखबार का संचालक होने पर किसी प्रकार का दबाव नहीं है। एक प्रकार की आज़ादी का एहसास होता है। यहां से ईमानदारी की पत्रकारिता कर सकते हैं। समस्याएं हैं तो आर्थिक। लम्बे समय तक चला पाना और बिना समझौते किये चला पाना सबसे मुश्किल है। इस लिहाज़ से बहुत मुश्किल यात्रा रही है। सोंचते रहना पड़ता है कि कैसे चला पाएंगे।
प्रश्न- बतौर पत्रकार दूसरे संस्थानों में किस प्रकार का दबाव था, जो आप पर गांव कनेक्शन में नहीं है।
उत्तर- दूसरे संस्थानों में भी मुझे किसी समस्या का सामना नहीं करना पड़ा। वह भी एक अच्छा अनुभव था। एसोसिएटेड प्रेस और हिन्दुस्तान टाइम्स जैसे बड़े संस्थानों में मैंने काम किया। वहां पर फील्ड रिपोर्टिंग करने का मौका मिला। अपने मन का लिखने का मौका मिला। उसी विधा को आगे बढ़ाने का काम कर रहा है गांव कनेक्शन।
प्रश्न- आप पत्रकार क्यों बनना चाहते थे?
उत्तर- मेरी पत्रकारिता में कोई खास रुचि नहीं थी। (bmanglam.blogspot.com) मैं पत्रकारों को उस वक्त तक केवल मैग्नीफाइड स्टैनोग्राफर (आशुलिपिक) ही समझता था। लेकिन कुछ ऐसे इत्तेफाक थे, जिन्होंने मुझे पत्रकार बनाया। मेरे दोस्त के पास भारतीय जनसंचार संस्थान (आईआईएमसी) का एक फॉर्म बच गया था। मैंने उसे भर दिया और अन्तत़ः आईआईएमसी में चयन हो गया।
प्रश्न- अगर आपकी पत्रकारिता में कोई रुचि नहीं थी, तो आप क्या बनना चाहते थे।
उत्तर-मैं मैगज़ीन चलाना चाहता था। 12वीं में एक बार मैगज़ीन चलाने की कोशिश भी की थी। उस वक्त साइक्लोस्टाइल होता था, फोटोकॉपी की तरह। परिवार वालों से पैसे लेकर मैगज़ीन चलाने की कोशिश की थी। बहुत मासूम प्रयास था। मैगज़ीन चलाने के अलावा किताबें लिखना चाहता था, गीत गाना चाहता था।
प्रश्न- 10 रुपए की आरटीआई से रामनाथ गोयनका पुरस्कार। क्या किस्सा था वो?
उत्तर- मेरे एक परिचित थे जो झारखण्ड के थे और वन विभाग में थे। सरकार विकास के लिये बहुत सारा पैसा प्रदेशों को देती है, लेकिन बहुत सा विकास का पैसा वापस भी हो जाता है। मैंने गृह मंत्रालय से आरटीआई डालकर रिपोर्ट मांगी कि सरकार ने पिछले पांच सालों उग्रवाद वाले क्षेत्रों में कितना पैसा खर्च किया, कितना पैसा वापस आया और कितना काम हुआ।
(bmanglam.blogspot.com)आसान तरीका होता कि हम उस पर 2-3 ख़बरें कर देते और किस्सा ख़त्म करते। लेकिन इसका असर देखने के लिये मैंने इस विषय पर फील्ड रिपोर्टिंग की। मैंने राहुल पण्डिता के साथ मिलकर इस विषय पर किताब भी लिखी। हिंदुस्तान टाइम्स में की इस सीरीज़ इंडिया बीसीस्ट को 2007 में रामनाथ गोयनका पुरस्कार मिला। इसी खबर को 2009 में के सी कुलिश पुरस्कार भी मिला।
प्रश्न-गांव कनेक्शन में बहुत से लोग आपके परिवार से आते हैं। आपको नहीं लगता कि इससे आपके संस्थान में अन्य लोगों को प्रदर्शन का उचित मौका नहीं मिलता।
उत्तर-जब किसी स्टार्ट अप की शुरूआत होती है, तो जो लोग आप पर विश्वास रखते हैं। जो लोग आपके लिये निस्वार्थ तौर पर आपके लिये कम पैसों पर या फिर बिना पैसे के लिये आपके लिये काम करने को तैयार हो जाते हैं, वो आपके घर वाले ही होते हैं।
स्वयं फेस्टिवल में परिवार के साथ नीलेश मिसरा। फोटो- साभार फेसबुक |
गांव कनेक्शन के प्रधान संपादक मेरे पिता है। वो किसान हैं, लेखक हैं और अंग्रेज़ी की दुनिया को भी बखूबी समझते हैं। वो राजनीति के जानकार हैं। ऐसा एडिटर मिल पाना हमारे लिये बहुत मुश्किल है। (bmanglam.blogspot.com) मेरी पत्नी भी अखबार में सहायता करती हैं। हमें खुशी होती कि और लोग भी हमारे साथ जुड़ते, लेकिन बहुत समय तक ऐसा संभव नहीं हो पाता है। हमारा ध्यान इस पर है कि इससे हमारी क्वालिटी पर असर न पड़े।
प्रश्न- कई सारे अखबारों में प्रायोजक के अनुसार खबरें लिखी जा रही हैं। संपादक से अधिक प्रायोजक का महत्त्व बढ़ गया है। गांव कनेक्शन अखबार में कोई प्रचार नहीं छपता। एक संचालक के रूप में किस प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है?
उत्तर- हम पेड न्यूज़ के खिलाफ़ हैं। दुर्भाग्यवश सब जगह एक नॉर्म बन गई है। सरकारों तक ने इसे दर्जा दे दिया है। इस कारण हमारे लिये संघर्ष और बढ़ गया है। इसलिये हम दूसरे माध्यमों से पैसा कमा रहे हैं। जैसे रेडियो पर कहानियाँ सुनाकर पैसा कमाना, स्वयं फेस्टिवल से भी आमदनी करते हैं। आगे उम्मीद है कि सर्वे कर कुछ आमदनी करें, ताकि पत्रकारिता पर पैसे का प्रभाव न पड़े।
प्रश्न- भारत के तीन प्रदेशों झारखण्ड, बिहार और महाराष्ट्र में गांव कनेक्शन अपना विस्तार करने जा रहा है, लेकिन उनमें खेती का सबसे बड़ा प्रदेश पंजाब नहीं है। ऐसा क्यों??
उत्तर- हमारी मुश्किलें आर्थिक ही हैं। हमारा मॉडल सदस्यता पर आधारित है। जहां हमें वार्षिक सदस्यता इतनी मिलेगी कि एक साल तक बिना विज्ञापन के काम कर सकें, हम उस प्रदेश में जाना चाहेंगे।
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