भोलाराम की फ़ाइल
Narrationफाइलों में दबी हुई ज़िन्दगी कैसी होती है साहब, मालूम हैएकदम कुत्ते जैसीगरीब आदमी को हर कोई कुत्ता ही समझता हैअपना काम न हो गया सरकार का काम हो गयावज़न धरो तब फ़ाइल आगे बढ़ती हैऔर न धरो, तो धरने पे बैठ जाती हैऔर साहब ऐसा मसला नहीं है कि ये फ़ाइल का खेल सिर्फ़ इस दुनिया में ही चल रहा हैऊपर भी सारा काम लेन-देन करके ही चल रहा है साहबएंट्री एग्ज़िट से लेकर स्वर्ग नर्क तक की सीट में भी फिक्सिंग हो रही हैलेकिन पहली बार कुछ ऐसा हुआ कि यहाँ अटकी फाइल की वजह से वहाँ भूचाल आ गया साहबहमसे पूछिये तो यमराज की भी वाट लग गईहां.....Scene1चित्रगुप्त- ओ होहो होहोबड़ा काम है भाई, बड़ा काम हैएक तो ये धरती में तुम सबको तुम्हारे मां बाप पैदा करके छोड़ देते हैंअरे यहां तुम्हारे लिये स्पेशल लिस्ट क्रियेट करनी पड़ती हैऔर बिग डेटा पर अभी इतना डेवलपमेंट नहीं हुआ है बेटा7 अरब हो गए हो बढ़ते ही जा रहे हो, भगवान की मरजी के नाम पर कुछ भी करोगे मतलब... मेहनत तुम करो ठीकरा हमपे फोड़ दो। भगवान की मरजी......इसको स्वर्ग में डालो रे. चार पेग डाउन होने के बाद भी शर्मा जी की बेटी को घर तक सही सलामत छोड़ के आया था.तुम नर्क में जाओगे. न न न न... उधर जिधर से कोई मतलब नहीं, रेप किया मतलब सीधा नर्कपार्षद हो, विधायक हो चाहे सांसद हो.हां इनका क्या सीन हैसाथी- इनकी बैकलॉग हैचित्रगुप्त- ओहो...... बेटा क्लियर करके आना था यहां. सब क्लियर करके ही आते हैं यहां. एक बैकलॉग पर कौन फाँसी लगाता है, भाई। यहाँ 8 बैक वाले बैठे हैं, देखो इनके खिलखिलाते चेहरे। चलो बेटा बाद में आना।ओहोहोहोहो नमस्कार नमस्कार रामाधीर जी आइए आइए, स्वागत है। सुना है आपके ऊपर पिक्चर बनी है धरती में। बहुत तारीफें सुनी हैं भाई, बहुत बढ़िया मज़ा आ गया। वो क्या कहते हैं, “अब तो सच बोल दे....”रामाधीर- .....रामाधीरचित्रगुप्त- अब तो सच बोल दे रामाधीररामाधीर- हाँ...वो क्या है चीगुप्त जी कि बहुत थक गए हैं हम। विधायकी का काम करते करते जान एकदम ख़त्म सी हो गई है। कुछ दिन अब सुकून की ज़िंदगी जीने का का मन है। बस आखिरी इच्छा है।चित्रगुप्त- बताइए।रामाधीर- एक कमरा हमारा स्वर्ग कॉलोनी में अलॉट कर दीजिये जल्दी से।चित्रगुप्त- ओहोहो... साला सबको लगता है अपुन ही भगवान है। ऐसा है रामाधीर जी। जनता को बहुत दर्द दिये हैं आप। पब्लिक की कमाई चूस चूस के चुनाव जीते हैं। अगर गलती से भी यमराज को पता चल गया तो हमको नर्क में भेज देंगे। सिचुएशन नहीं समझ रहे हैं आप।रामाधीर- हम सब समझ रहे हैं चीगुप्त जी। बस एक कमरा। प्लेज...चित्रगुप्त- चलिये देखते हैं। अगर कुछ हुआ तो पक्का बताएंगे।सरदार ख़ान- चित्रगुप्त जी। एक ठो अरज हमारा भी सुन लीजिये। जहाँ भी भेज रहे हैं इनको, हमको साथ में भेजियेगा। पुराना हिसाब बाकी करना है। और कमरा भी अभी तक धुँआ धुँआ नहीं हुआ है न।रामाधीर- ए दैया। ये भी यहीं है।चित्रगुप्त- हाँ जी। यहाँ है और स्वर्ग कॉलोनी में हैं। बताइए कहाँ बुक करें रूम। स्वर्ग कॉलोनी में या....रामाधीर- हमको नर्क में भेज दीजिये चीगुप्त जी। अरे जहाँ कहोगे आप वहाँ रह लेंगे। बस इनसे बचा दीजिये हमको।चित्रगुप्त- तो निकल लीजिये नर्क कॉलोनी कमरा नंबर 369 । तुरन्त।.....रामाधीर- हाँ। निकल रहे हैं हम।सरदार ख़ान- अरे कहां जा रहे हैं। अब ही तो खेल शुरू हुआ है। अरे घेर इसको पीछे से घेर।चित्रगुप्त- हाँ जी। आप बताइए।साथी- महाराज, डेटाबेस में प्रॉब्लम आ गई है।चित्रगुप्त- ओहोहो... अब क्या कर दिया। एक तो ये डेटा एंट्री का काम हमसे नहीं होता। कमर अकड़ जाती है। पता नहीं 25000 में कैसे नौकरी कर लेते हैं धरती पर। इस बार मिलें यमराज तो सीधा बोल दूँगा कि इस सिस्टम पर काम नहीं होता। नया सिस्टम लाकर दीजिये।साथी- लेकिन गलती सिस्टम की नहीं डेटाबेस की है। देखिये, भोलाराम की मृत्यु पाँच दिन पहले हुई थी लेकिन अभी तक आत्मा की डिलीवरी नहीं हुई है।यमदूत- सर, गलती डेटाबेस की नहीं है। भोलाराम की आत्मा अभी तक यहां नहीं पहुंची क्योंकि उसकी आत्मा हमको चकमा देकर भाग गई।चित्रगुप्त + साथी- क्या।चित्रगुप्त- मतलब नया सिस्टम नहीं मिलेगा।साथी- सिस्टम छोड़िये सर। यहाँ अपने शरीर के सिस्टम की सलामती की सोंचिये। जिस बैल पर घूमते हैं यमराज, उसके सीँग जब अंदर जाएंगे तो आपका सिस्टम नहीं बचेगा।यमराज- क्या हुआ। किसी का ब्रेकअप हो गया क्या।यमदूत- प्रभु, कुछ और हो गया प्रभु। मैं कैसे बतलाऊं कि क्या हो गया। जो जीवन में मेरे साथ कभी नहीं हुआ वो आज हो गया।यमराज- बताओ तो हुआ क्या है।यमदूत- महाराज। पाँच दिन पहले भोलाराम नाम के एक जीव ने अपनी देह त्यागी। मैंने उसको पकड़ा और यहाँ के लिये यात्रा आरम्भ की। नगर के बाहर जैसे ही मैं इसे लेकर एक तीव्र वायु-तरंग पर सवार हुआ वैसे ही वह मेरे चंगुल से छूटकर न जाने कहां गायब हो गया। इन पांच दिनों में मैने सारा ब्रह्यांड छान डाला, पर उसका पता नहीं चला, महाराज।यमराज- अब तुममें बहुत जान बची नहीं है। बुढ़ापे में तुम्हारे हाथ ठीक से साथ नहीं दे रहे। कल के बुज़ुर्ग तुमको चकमा देकर भाग रहे हैं। ऐसा है, अब तुम ले लो रिटायरमेंट और घर गिरिस्ती संभालो।यमदूत- मेरी पकड़ में कोई कसर नहीं थी महाराज। मेरे हाथ से बड़े बड़े वकील नहीं छूट सके, धन्ना सेठ नहीं छूट सके। इस बार न जाने कैसे एक साठ साल का बूढ़ा हाथ को चकमा देकर भाग निकला।चित्रगुप्त- ''महाराज, आजकल पृथ्वी पर इसका व्यापार बहुत चला है। लोग दोस्तों को फल भेजते है, और वे रास्ते में ही रेलवे वाले उडा देते हैं। होज़री के पार्सलों के मोज़े रेलवे आफिसर पहनते हैं। मालगाडी क़े डब्बे के डब्बे रास्ते में कट जाते हैं। एक बात और हो रही है। राजनैतिक दलों के नेता विरोधी नेता को उडा कर कहीं बन्द कर देते हैं। कहीं भोलाराम के जीव को भी किसी विरोधी ने, मरने के बाद, खराबी करने के लिए नहीं उडा दिया?''यमराज- तुम बहुत चांय चांय कर रहे हो। लगता है, तुम्हारी भी रिटायर होने की उम्र आ गई। बहुत ज्ञानी बन रहे हो तो ज़रा बताना, भला, भोलाराम जैसे दीन आदमी को किसी से क्या लेना-देना?नारद मुनि की एंट्री- नारायण नारायण। चांय चांय का शोर सुनते हुए ये भंवरा आपके गुलिस्तान में आ गया तो समझो आ ही गया। बड़े चिन्तित दिख रहे हैं यमराज। किसी का ब्रेकअप हुआ क्या। अच्छा ये बताइए कि घर में सब कैसे हैं। ये बताइए कि छोटे बेटा भैंसे की सवारी में पारंगत हुआ कि नहीं। जो नया प्लॉट खाली करवाया था आपने नर्क कॉलोनी में, वहां का काम कैसा चल रहा है। लोग रहना शुरू हुए कि नहीं या फिर वहाँ भी कोई आदर्श घोटाला हो गया।मैं इतनी देर से बोल रहा हूँ, आप कुछ बोल ही नहीं रहे हैं।यमराज- तुम बोलने दो तो हम कुछ बोलें। बोलते ही जा रहे हो बोलते ही जा रहे हो। नरक में पिछले सालों से बडे ग़ुणी कारीगर आ गए हैं। एकदमै जबरदस्त। कई इमारतों के ठेकेदार हैं, जिन्होंने पूरे पैसे लेकर रद्दी इमारतें बनाई। बडे-बडे इंजीनियर भी आ गए हैं, जिन्होंने ठेकेदारों से मिलकर भारत की पंचवर्षीय योजनाओं का पैसा डकार खाया। ओवरसीयर हैं, जिन्होंने उन मज़दूरों की हाज़िरी भरकर पैसा हड़पा, जो कभी काम पर गए ही नहीं। इन्होंने बहुत जल्दी नरक में कई इमारतें तान दी हैं। वह समस्या तो हल हो गई, पर एक नई समस्या आ गई है।चित्रगुप्त- भोलाराम नाम के आदमी की पांच दिन पहले मृत्यु हुई। उसके जीव को यमदूत यहां ला रहा था, कि जीव इसे रास्ते में चकमा देकर भाग गया। इसने सारा ब्रह्मांड छान डाला, पर वह कहीं नहीं मिला। अगर ऐसा होने लगा, तो पाप-पुण्य का भेद ही मिट जाएगा।नारद- उस पर इनकम टैक्स तो बकाया नहीं था? हो सकता है, उन लोगों ने उसे रोक लिया हो? वो क्या है इनकम टैक्स वाले किसी के सगे नहीं होते। वो भी सिचुएशन नहीं समझते।यमदूत- इनकम होती तो टैक्स होता। भुखमरा था। न घर में रोटी थी खाने को, न ही पीने को पानी। पूरा परिवार इसी हाल में पाँच साल से जी रहा था।नारद- मामला बड़ा दिलचस्प है। अच्छा, मुझे उसका नाम, पता बतलाओ। मैं पृथ्वी पर जाता हूं। पता लगाता हूँ कि मामला क्या है।चित्रगुप्त (रजिस्टर देखते हुए)- 'भोलाराम नाम था उसका। जबलपुर शहर के घमापुर मुहल्ले में नाले के किनारे एक डेढ क़मरे के टूटे-फूटे मकान पर वह परिवार समेत रहता था। उसकी एक स्त्री थी, दो लडक़े और एक लडक़ी। उम्र लगभग 60 वर्ष। सरकारी नौकर था। पांच साल पहले रिटायर हो गया था, मकान का उस ने एक साल से किराया नहीं दिया था, इसलिए मकान-मालिक उसे निकालना चाहता था। इतने मे भोलाराम ने संसार ही छोड दिया। आज पांचवां दिन है। काफ़ी हद तक हो सकता है कि, अगर मकान-मालिक सच में मकान-मालिक है, तो उसने भोलाराम के मरते ही, उसके परिवार को निकाल दिया होगा। इसलिए आपको परिवार की तलाश में घूमना होगा।नारद- चलिये, तो मिलते हैं आपसे पूरी पड़ताल करने के बाद।(मां बेटी के सम्मिलित क्रंदन से ही नारद भोलाराम का मकान पहचान गए।)Scene 2नारद- नारायण नारायण।बेटी- बाहर जाओ महाराज। अभी भिक्षा देने की सूरत में नहीं हैं हम। बाद में आना।नारद- बेटे। हमें मालूम है कि आप अभी इस सूरत में नहीं कि भिक्षा दे सको। और मैं यहाँ भिक्षा लेने आया भी नहीं। घर में कोई बड़ा हो तो उसे बाहर भेजो बेटी।पत्नी- कौन है शिवानी। कौन है बाहर।बेटी- माँ कोई साधु हैं। आपसे बात करना चाहते हैं।पत्नी- रुको आती हूँ मैं।नारद- माताजी, भोलाराम को क्या बीमारी थी?पत्नी- आप तो साधु हैं। आपसे क्या छुपाना। गरीबी की बीमारी थी उनको। पांच साल हो गए पैन्शन पर बैठे थे, पर पेन्शन अभी तक नहीं मिली। हर 10-15 दिन में दरख्वास्त देते थे, पर वहां से जवाब नहीं आता था और आता तो यही कि तुम्हारी पेन्शन के मामले पर विचार हो रहा है। इन पांच सालों में सब गहने बेचकर हम लोग खा गए। फिर बर्तन बिके। अब कुछ नहीं बचा। पेट कड़कड़ाने को होने लगे थे। चिन्ता मे घुलते घुलते और भूखे मरते मरते दम तोड़ दिया और हमको छोड़ कर चले गए।नारद- क्या करोगी मां? उनकी इतनी ही उम्र थी।पत्नी- ऐसा मत कहो, महाराज। उम्र तो बहुत थी उनकी। 50-60 रूपया महीना पेंशन मिलती तो कुछ और काम कहीं करके गुज़ारा हो जाता। पर क्या करें? पांच साल नौकरी से बैठे हो गए और अभी तक एक कौडी नहीं मिली।नारद- मां, यह बताओ कि यहां किसी से उनका विशेष प्रेम था, जिसमें उनका जी लगा हो?पत्नी- लगाव तो महाराज, बाल-बच्चों से होता है।नारद- नहीं, परिवार के बाहर भी हो सकता है। मेरा मतलब है, कोई स्त्री?पत्नी- बकने से पहले कुछ सोंच भी लिया करो महाराज! अपनी इस पोशाक का तो ख़्याल करो। साधु हो, कोई लुच्चे-लफंगे नहीं हो। जिन्दगी भर उन्होंने किसी दूसरी स्त्री को आंख उठाकर नहीं देखा।नारद- कितनी भोली पत्नी हैं आप। यही भ्रम अच्छी गृहस्थी का आधार है। आज के युग में ऐसी सोंच वाली स्त्री। भइ मैं तो चाहता हूँ हर पति को आप ही पत्नी के रूप में मिलें।पत्नी- क्या कहा आपनेनारद- मतलब हर पति को आप जैसी ही पत्नी मिले।पत्नी- अच्छा। मैं तो कुछ और ही....नारद- अच्छा माता जी विदा दीजिये।पत्नी- महाराज। एक अरज हमारी भी सुन लीजिये। आप तो साधु हैं, सिध्द पुरूष हैं। कुछ ऐसा नहीं कर सकते कि उनकी रूकी पेंशन मिल जाये। इन बच्चों का पेट कुछ दिन भर जाए?नारद- साधुओं की बात कौन मानता है? मेरा यहां कोई मठ तो है नहीं? लेकिन आप कहती हैं तो एक बार सरकारी दफ्तर में जाऊंगा और कोशिश करूंगा। हो सकता है कि कुछ काम बन ही जाए।अच्छा माताजी आज्ञा दीजिये, धन्यवाद।Narrationवो तो अच्छा हुआ नारद जी की तेज़ अकल का जादू चल गया, वरना केस पूरा करने से पहले ही नारद जी स्वर्ग सिधार गए होते। और अगर इतना नहीं तो तीन चार तमाचों और आठ दस बेलन में सरकारी दफ़्तर पहुँचने की हालत तो नहीं बचती। इन सबके बीच आपको एक सजेशन है। किसी की पत्नी के सामने उसके पति की बहुत बुराई मत करना। पत्नी बुरा मान गई तो हो सकता है कि उस वक्त आपकी तेज़ अक्ल का जादू न चले, और...
खैर, आगे देखते हैं.....Scene 3नारद- नारायण नारायण।बाबू- अरे कहाँ ढूँढ़ रहे हैं, यहाँ हैं नारायण। किसी फैन्सी ड्रेस कॉम्पटीशन से आ रहे हैं क्या, यहाँ के तो लगते नहीं। बताइए, किससे मिलना है?नारद- भोलाराम नाम के आदमी की पेंशन नहीं आई अभी तक, इस बारे में कुछ बात करनी है। बड़े साहब कहाँ मिलेंगे?बाबू- बड़े साहब अन्दर बैठे हैं।(नारद जाने लगते हैं अन्दर)बाबू- अरे कहाँ जा रहे हैं। भगवान से मिलने जा रहे हैं, तो कुछ पुजारी का भी ख़्याल रखिये। आज मंगलवार है, बस भोले बाबा का थोड़ा सा प्रसाद हमें भी चखा देते तो मज़ा ही आ जाता।नारद- अब भोले बाबा का प्रसाद कहाँ से लाऊँ। पुजारी जी, हमें थोड़ा अर्जेन्ट है। बाद में प्रसाद खिला दें तो चलेगा।बाबू- चलिये। साधु मालूम होते हैं, इसलिये छोड़ देता हूँ। रुकिये, मैं पहले मिलके आता हूँ, बाद में अन्दर आइएगा।(बाबू अन्दर जाता है, साहब से मिलकर आता है)(बाबू बाहर आता है)नारद- जाइए, हमने छोड़ दिया आपको लेकिन भगवान दक्षिणा ज़रूर लेंगे। ज़रा सँभलकर।(नारद मुनि अन्दर जाते हैं)साहब- क्या काम है?नारद- साहब, वो एक आदमी था भोलाराम, उसकी पेंशन पाँच साल से अटकी है। घर वाले यहाँ के चक्कर काट काट कर थक गए। इस बीच उसकी मौत हो गई और पूरा परिवार सड़कों पर आ गया। घरवालों के पास अब तो खाने के लिये कुछ नहीं बचा साहब। जैसे तैसे करके अपनी ज़िन्दगी गुज़र कर रहे हैं। अब आप से क्या छुपाना साहब, आप तो बड़े भले आदमी मालूम होते हैं। कुछ ऐसा करिये भोलाराम की पेंशन उसके घरवालों तक पहुँच जाए।साहब- देखिये साधु जी। ये दफ़्तर है फाइलों की जेल और हम मज़दूर आदमी। बताइए कितना मज़दूरी करें। रात दिन मज़दूरी करते हैं, तब जाकर दो वक़्त की रोटी जुटा पाते हैं। इतनी सारी फाइलें हैं कि कहीं दबा होगा फाइल भोलाराम का, जब मिला तो निपटाएंगे उसे भी।नारद- और नहीं मिला तो??
साहब- नहीं मिला तो ढूँढा जाएगा। फिर होगा उस पर काम। देखिये क्या है न, यहाँ लोगों का फाइल है न, बहुत जल्दी गुम हो जाता है। इसलिये उन पर थोड़ा सा वज़न धरिये, तो काम जल्दी होता है। बाबू ने आपको बताया ही होगा।नारद- ये पेपरवेट रखे तो हैं आपके सामने। इनसे नहीं रुकती क्या फाइलें।साहब- साधु जी। अब देखिये क्या है, आप हैं वैरागी आदमी। अच्छा समझिये। सरकार मतलब भगवान। तो सरकार का दफ़्तर क्या हुआ, भगवान का मन्दिर। अब मन्दिर में मन्नत माँगनी है तो चढ़ावा तो चढ़ाना ही पड़ेगा न। और ऐसे ही एक दफ़्तर में सैकड़ों भगवान होते हैं। किसी को पाँच हज़ार का चाहिये तो किसी को दस हज़ार का। अब हमारे पुजारी पर भोले बाबा का रंग चढ़ गया है तो उसको भी भांग धतूरा चखाना होता है। बस भोलाराम ने यही काम नहीं किया। वरना अब तक उसकी फाइल क्लियर हो गई होती और पूरा परिवार पेंशन का आनन्द उठा रहा होता।नारद- तो अब क्या उपाय है साहब।साहब- कुछ नहीं, बस भोलाराम की उड़ती हुई उस फ़ाइल पर वज़न रख दीजिये। फ़ाइल खुद बखुद क्लियर हो जाएगी।नारद- वज़न तो नहीं है हमारे पास। कुछ और उपाय सुझाइए। नहीं तो ऊपर बड़ा संकट हो जाएगा।साहब- उम्म्म्म। बहुत बड़े साधु लगते हैं आप। मेरी लड़की गाना सीखती है, अगर आप जैसे साधु अपनी वीणा मेरी लड़की को भेंट स्वरूप देंगे तो उसके हाथों से स्वर अपने आप फूट पड़ेंगे।वैसे भी साधु सन्तों की आवाज़ में करुणा होती है और हाथों में आशीर्वाद। मेरी लड़की जल्दी संगीत सीख जाएगी और उसका विवाह हो जाएगा। इसलिये आपकी इस वीणा को मैं वज़न मानकर फ़ाइल पर रख दूँगा और तुरन्त क्लियर कर दूँगा। अब आप बताइए।नारद- (दुःखी होते हुए) लीजिए। अब ज़रा जल्दी उसकी पेन्शन का आर्डर निकाल दीजिए।साहब- (खुश होते हुए) नारायण, भोलाराम की फाइल निकालो।
Narrationभोलाराम की फ़ाइल तो निकल गई, लेकिन सैकड़ों भोलाराम आज भी फ़ाइलों के लिये चक्कर लगा रहे हैं। भ्रष्टाचार का सिलसिला वहाँ से तूल पकड़ता है, जब इनके ख़िलाफ़ कोई आवाज़ नहीं उठाता। ‘क्या करें यार, बताओ’ के बोल सुनते ही लोकतंत्र तड़प तड़प कर मर जाता है। अगर भ्रष्टाचार समस्या है तो ये आपकी उपजाई हुई है, इसलिये निदान भी आपको ही निकालना है। कॉलेजों के फेस्ट में होने वाले भ्रष्टाचार के ऊपर लगाम लगाइए; दोस्ती, जुगाड़, सीनियर जूनियर के नाम पर जो लोग आपको मिलने वाले अवसरों को चुरा लेते हैं और आपके अधिकारों का हनन करते हैं, उस भ्रष्टाचार को रोकिये, दो चार नंबर बढ़ाकर आप जिस हुनर को मार देते हैं इस किस्म के छोटे छोटे भ्रष्टाचार को रोकिये और यूनिवर्सिटी फंड के नाम पर जो लोग बड़े शहरों में घूमने निकल जाते हैं, इस किस्म के छोटे छोट भ्रष्टाचार को रोकिये, आप देखेंगे हिन्दुस्तान ख़ुद बख़ुद सुधर जाएगा। ये करना आपका कर्त्तव्य भी है और आने वाले वक़्त की ज़रूरत भी। याद रखियेन तेरा है न मेरा है ये हिन्दुस्तान सबका है।नहीं समझी गई ये बात तो नुकसान सबका है।।
(प्रस्तुत कहानी हरिशंकर परसाई जी द्वारा लिखित है , जिसे यहाँ नाटक के रूप में परिणत किया गया है।)
मंगलम् भारत
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