Reservation on Caste, Social Justice or Total Injustice
जातिगत आरक्षण, सामाजिक
न्याय या पूर्णतया अन्याय
जो तुमको हो पसन्द वही बात
करेंगे
तुम दिन को अगर रात कहो रात
कहेंगे
आज़ादी जब छीन लें संविधान
की बेड़ियाँ
और फिर भी हम चुप बैठें तो
अपराध करेंगे
खराब है वह जातिगत आरक्षण
जिसने बाबा साहब अंबेडकर के सपनों को धूल
में मिलाया, साथ ही खराब हैं वे सवाल जो गरीब की भूख में उसकी जाति को ढूँढते हैं।
जब मौत आती है तो आपसे जाति का
प्रमाणपत्र माँगती है क्या? क्या कोई पुल पूछकर ढहता है कि मुझको कौन से इंजीनियर ने
बनाया था? जब विज्ञान, प्रकृति
और नियति जातिगत आरक्षण को नहीं मानते तो हम कौन होते हैं जातिगत आरक्षण की बात
करने वाले?
हिन्दुस्तान बहुत बड़ा राष्ट्र है,
सबकी बात आसानी से पहुँचाना बहुत असंभव है। अभी तक तो उन लोगों की बात उठाई गई जो
जाति एवं धर्म से ऊपर उठकर स्वयं को एक हिन्दुस्तानी मानते हैं।
परन्तु हमारा आज का ये मॉडर्न
समाज और हमारे दुनिया के सबसे लविंग पापा, हमारे खिलाफ़ हो जाते हैं जब हमारा
प्रेम किसी दूसरी जाति के शख्स के साथ परवान चढ़ता है। ऐसे तो हम बड़े मॉडर्न लोग
हैं, परन्तु आज भी उत्तर प्रदेश के गाँवों में अलग-अलग रसोइया मिड डे मील बनाता
है। ऐसे तो हम बड़े मॉडर्न लोग हैं, परन्तु शहीद का शव कौन सी चिता पर जलेगा वो इस
आधार पर तय किया जाता है कि वह शहीद कौन से धर्म का था। ऐसे तो हम बड़े मॉडर्न लोग
हैं, परन्तु चुनाव में वोट डालते वक्त हम इस बात का ध्यान ज़रूर रखते हैं कि हमारा
नेता कौन सी जात का है।
शायद इस स्वप्न के लिये तो संविधान
नहीं बनाया बाबा साहब अंबेडकर ने। अरे जिस आरक्षण का निर्माण हमारी जातिगत सोंच को
खत्म करने के लिये हुआ था, उसी को लात मारकर हम बराबरी की बात करते हैं, ये है
हमारे देश की विडंबना।
यदि इस आरक्षण से मुक्त होना है, तो सभी को अपनी सोंच व विचारों को आज़ाद करना
होगा। जब मैला ढोने वाला कोई शख्स किसी विशेष जाति का न होकर एक हिन्दुस्तानी होगा,
तब बदलेगी हमारी सोंच।
इसलिये कूच करना होगा, प्रस्थान
करना होगा उस क्रान्ति की दिशा में, जहाँ से मेरे अन्दर का हिन्दू या फिर मेरे
अन्दर का मुसलमान मेरे अन्दर का हिन्दुस्तान बन सके। ऐसा ये सारा जहान बन सके,
अमीर और गरीब की कोई जाति न हो, बल्कि हर शख्स एक अच्छा इंसान बन सके।