Trees
शज़र मैं उन हज़ारों खुशबुओं की नज़्म हूँ जो मेरे घर के बुज़ुर्गों की रोपी हुई है लफ़्ज़ मेरे दादा जी ने सिखलाए हैं मुझे और एहसास-ए-अमानत मेरी दादी ने सौंपी हुई है। मेरा कहना, मेरा सुनना, या ये मेरी शायरी उसमें जो अच्छा है, वो उन्हीं का हिस्सा है मेरी पसंद, नापसंद, या मेरी ये कहानियाँ कुछ पुरानी बात है, कुछ उनका किस्सा है। मुझे फ़ख्र है घर के उन शज़रों पर मेरा वज़ूद हैं ये, मेरी पहचान हैं ये जिनकी शागिर्दी में ये शाख महकने लगती है वो शाख हूँ मैं और मेरी जान हैं ये। Comment what you think about this poem... मंगलम् भारत BManglam.blogspot.in