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शज़र मैं उन हज़ारों खुशबुओं की नज़्म हूँ जो मेरे घर के बुज़ुर्गों की रोपी हुई है लफ़्ज़ मेरे दादा जी ने सिखलाए हैं मुझे और एहसास-ए-अमानत मेरी दादी ने सौंपी हुई है। मेरा कहना, मेरा सुनना, या ये मेरी शायरी उसमें जो अच्छा है, वो उन्हीं का हिस्सा है मेरी पसंद, नापसंद, या मेरी ये कहानियाँ कुछ पुरानी बात है, कुछ उनका किस्सा है। मुझे फ़ख्र है घर के उन शज़रों पर मेरा वज़ूद हैं ये, मेरी पहचान हैं ये जिनकी शागिर्दी में ये शाख महकने लगती है वो शाख हूँ मैं और मेरी जान हैं ये। Comment what you think about this poem... मंगलम् भारत BManglam.blogspot.in

ISIS thriving in INDIA

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भारत में पनपता ISIS      मैं ये लेख उस वक़्त लिख रहा हूँ, जब भारत एक आग से धधक रहा है। ये आग दुष्यंत कुमार की आग, ‘ हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिये ’ से बिल्कुल भी संबंधित नहीं है। ट्विटर पर, फ़ेसबुक पर, व्हॉट्सएप्प पर जनता के भीतर एक अजब किस्म का आक्रोश है ; सामने वाले को ख़त्म कर देने का आक्रोश, सामने वाले को अपनी बात कहने से पहले ही उसकी जान ले लेने का आक्रोश। और ये आक्रोश, व्यक्ति की प्रसिद्धि, उसके स्टेटस और उस व्यक्ति का किस व्यक्ति के विरोध में स्वर है ; पर निर्भर है। टीवी चैनल की बाइटों में एक व्यक्ति के दाँतों से किटकिटाती आवाज़ का स्वर और कही गई बात- ‘ अगर फलाँ नेता मेरे हाथ लग जाए, तो मैं अभी उसे मौत के घाट उतार दूँ ’ , या फिर ‘ फलाँ नेता पर तो जूते चप्पल चलने चाहिये ’ । स्याही फेंकने, जूता फेंकने, थप्पड़ मारने से अगर स्वराज आता तो नए 2000 के नोटों में गाँधी की तस्वीर की जगह गोलियाँ हाथ में लिये गोडसे होते। आपको पता है, कौन लोग हैं ये या किस विचारधारा से आते हैं ? ये उस विचारधारा से आते हैं, जिस विचारधारा से निर्भया काण्ड करने वाले अपराध...

Is the pace of Growth and Development determined by the Quality of Governance?

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क्या विकास और प्रगति की गति, शासन की गुणवत्ता पर निर्भर करती है ? बदल रही है ज़िन्दगी, साल बदल रहे हैं। बदल रहा है देश, यहाँ के हाल बदल रहे हैं। लेकिन नहीं बदल रहे हमारे सामने, कुछ पुराने बवाल आज भी हैं। ज़िन्दगी तो गुज़र रही है रफ़्ता रफ़्ता, लेकिन कुछ तीख़े सवाल आज भी हैं।             पिछले सत्तर सालों में भारत में होने वाले परिवर्तन का सीधा असर हमारी विचारधाराओं से होता हुआ चर्चाओं और बहसों तक हुआ है। आज से दस साल पहले, बीस साल पहले हम चर्चा किया करते थे कि क्या गरीबी सच में कम हुई ? क्या प्रशासन अपना काम नहीं कर रहा है ? लेकिन आज हम उस मुहाने पर खड़े हैं, जहाँ से विकास और प्रगति का पथ प्रशस्त होता साफ़ दृष्टिगोचर होता है।       अगर आप मुझसे पूछिये कि क्या विकास और प्रगति की गति, शासन की गुणवत्ता पर निर्भर करती है ? तो मैं कहूँगा हाँ, निश्चित रूप से ; विकास व प्रगति तय करने में शासन का महत्त्वपूर्ण योगदान है।       लेकिन मैं आपसे पूछना चाहता हूँ, कि क्या सिर...

Does Religion Defy Rationality???

क्या धर्म बौद्धिकता की अवहेलना करता है ?       भगवान श्रीकृष्ण गीता में अर्जुन से कहते हैं, साधुजनों के उद्धार के लिये, दुष्कर्म करने वालों का विनाश करने के लिये और धर्म की स्थापना के लिये मैं पल-पल में प्रकट होता हूँ।       मैं पूरे विषय को केवल दो पंक्तियों में समाप्त कर सकता हूँ। अगर आप मेरे हिन्दू होने, इनके मुसलमान होने, किसी अन्य के सिख होने को धर्म मानते हैं तो हाँ, निश्चित रूप से धर्म, बौद्धिकता की अवहेलना करता है। परन्तु, यदि आप उस व्यवस्था ; जिससे होकर प्रत्येक जन वैराग्य को प्राप्त करते हैं, को धर्म मानते हैं तो निश्चित रूप से धर्म, बौद्धिकता की अवहेलना नहीं करता। इसलिये प्रमुख विषय यह नहीं है, कि धर्म बौद्धिकता की अवहेलना करता है या नहीं। प्रमुख विषय यह है कि आप धर्म की संज्ञा क्या लेते हैं ?       साथियों ! अवहेलना की समस्या तब पैदा होती है, जब संवाद की संभावनाएँ समाप्त हो जाती हैं, तर्कों पर वाद-विवाद खत्म हो जाता है और अपनी नीतियों को धर्म का नाम बताकर मानव समाज पर थोपना प्रारंभ हो जाता ...

Violence in Modern Society

समकालीन दुनिया में हिंसा “ हिंसा से निर्मित भूसंस्कृति, मानवीय होगी न, मुझे भय ”             महात्मा गांधी की विचारधारा से भरी यह प्रेरक पंक्ति भारत की वैचारिक और मौलिक स्थिति तथा नवीन भारत में कार्य करने से पहले होने वाली असमंजसता को प्रस्तुत करती है और विचार  करने पर मजबूर करती है। प्रस्तुत समय, भारत के लिये विचार विभेद में संघर्ष तथा छटपटाहट के साथ जवाबदेही का है। पाकिस्तान की ओर से होती गोलीबारी और उसका प्रत्युत्तर, बाद में उरी हमले में सेना की कार्रवाई से एक ओर भारत के शौर्य का दर्शन होता है, वहीं दूसरी ओर नेहरू द्वारा दिये गए पंचशील सिद्धान्तों पर भी कुठाराघात होता है। प्रस्तुत दो विषयों में से किसी एक विषय की राह पकड़ना भारत के लिये कदापि सरल नहीं है। एक दिशा तो वह है, जो भारत की संस्कृति को बताती है ; दूसरी वह है जो ताकत को बताती है। भारत की संस्कृति में अहिंसा का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य की बात करें, या फिर भारत में जन्मे अन्य धर्मों की, सभी में अहिंसा का मार्ग ही...

Video of Manglam at Matrika Auditorium in Kavi Sammelan

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At Matrika Auditorium in Kavi Sammelan