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Reservation on Caste, Social Justice or Total Injustice

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जातिगत आरक्षण, सामाजिक न्याय या पूर्णतया अन्याय जो तुमको हो पसन्द वही बात करेंगे तुम दिन को अगर रात कहो रात कहेंगे आज़ादी जब छीन लें संविधान की बेड़ियाँ और फिर भी हम चुप बैठें तो अपराध करेंगे       खराब है वह जातिगत आरक्षण जिसने  बाबा साहब अंबेडकर के सपनों को धूल में मिलाया, साथ ही खराब हैं वे सवाल जो गरीब की भूख में उसकी जाति को ढूँढते हैं।       जब मौत आती है तो आपसे जाति का प्रमाणपत्र माँगती है क्या ? क्या कोई पुल पूछकर ढहता है कि मुझको कौन से इंजीनियर ने बनाया था ? जब विज्ञान, प्रकृति और नियति जातिगत आरक्षण को नहीं मानते तो हम कौन होते हैं जातिगत आरक्षण की बात करने वाले ?       हिन्दुस्तान बहुत बड़ा राष्ट्र है, सबकी बात आसानी से पहुँचाना बहुत असंभव है। अभी तक तो उन लोगों की बात उठाई गई जो जाति एवं धर्म से ऊपर उठकर स्वयं को एक हिन्दुस्तानी मानते हैं।       परन्तु हमारा आज का ये मॉडर्न समाज और हमारे दुनिया के सबसे लविंग पापा, हमारे खिलाफ़ हो जाते हैं जब हमारा...

LIFE

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LIFE      What is Life? Is it a puzzle, is it a feeling or a relationship or something else? Or life is any different thing which is not a cup of tea for us, which is not known by us, which cannot come in our mind? Everyone has his own ideology about life and ideology comes with experience. To crack the score of IIT Advance can be the life of mine. To get marry with the girl I want can be the life of mine. To get the job in Google or Microsoft can also be the life of mine. But according to me, these things can be the next goal of my life but it is not the whole part of my life. A great journey which can tell all the feelings of me is Life. According to Vedas, Yam comes to take the soul and goes to Yamlok. I won’t want to go again to earth for life. Life is for one time, there are so many things in life, so many colors of life and I want to feel every color of life. That is life, to enjoy all the things. When we were a kid, we used to know everything about things...

Unifests are organized only for Competition; not for Peace, Development and Talent.

युवा महोत्सव का आयोजन शान्ति, विकास एवं प्रतिभा के लिये  नहीं होता ; सिर्फ़ प्रतिस्पर्धा के लिये होता है। शुरू हुआ एक नया उत्सव, शुरू हुई एक खोज नई मंचों को जीवित करती, प्रतिभाएँ दिखीं हर रोज़ नई पर आओ अब बात करें, जो भटक गए पथ से उनकी जो हार जीत ही जीते हैं, है बेड़ी जिनके जीवन की       भारत के उत्तरी छोर से लेकर दक्षिणी छोर तक के विद्यार्थी आते हैं इस युवा महोत्सव में। प्रतिस्पर्धा का एक बड़ा नामचीन मंच बन चुका है हमारा ये युवा महोत्सव। परन्तु विडंबना इतनी है कि आज ये मंच सिर्फ़ प्रतिस्पर्धा का पर्याय बन चुका है ; शान्ति, विकास एवं प्रतिभा जैसी बातें समाज के मध्य दृष्टिगोचर होती प्रतीत नहीं होतीं।       यदि ये मंच सिर्फ़ और सिर्फ़ प्रतिस्पर्धा के संपोषण के लिये बना है, तो फिर क्या कारण है कि प्रतिस्पर्धा के पश्चात् सैकड़ों प्रतिभाएँ स्वयं को निखारने की बजाय छात्रावास के कमरों में आराम करती हुई दिखाई देती हैं।       यदि कुछ पलों के लिये मान भी लिया जाए कि इन उत्सवों का आयोजन सिर्...

Trees

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शज़र मैं उन हज़ारों खुशबुओं की नज़्म हूँ जो मेरे घर के बुज़ुर्गों की रोपी हुई है लफ़्ज़ मेरे दादा जी ने सिखलाए हैं मुझे और एहसास-ए-अमानत मेरी दादी ने सौंपी हुई है। मेरा कहना, मेरा सुनना, या ये मेरी शायरी उसमें जो अच्छा है, वो उन्हीं का हिस्सा है मेरी पसंद, नापसंद, या मेरी ये कहानियाँ कुछ पुरानी बात है, कुछ उनका किस्सा है। मुझे फ़ख्र है घर के उन शज़रों पर मेरा वज़ूद हैं ये, मेरी पहचान हैं ये जिनकी शागिर्दी में ये शाख महकने लगती है वो शाख हूँ मैं और मेरी जान हैं ये। Comment what you think about this poem... मंगलम् भारत BManglam.blogspot.in

ISIS thriving in INDIA

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भारत में पनपता ISIS      मैं ये लेख उस वक़्त लिख रहा हूँ, जब भारत एक आग से धधक रहा है। ये आग दुष्यंत कुमार की आग, ‘ हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिये ’ से बिल्कुल भी संबंधित नहीं है। ट्विटर पर, फ़ेसबुक पर, व्हॉट्सएप्प पर जनता के भीतर एक अजब किस्म का आक्रोश है ; सामने वाले को ख़त्म कर देने का आक्रोश, सामने वाले को अपनी बात कहने से पहले ही उसकी जान ले लेने का आक्रोश। और ये आक्रोश, व्यक्ति की प्रसिद्धि, उसके स्टेटस और उस व्यक्ति का किस व्यक्ति के विरोध में स्वर है ; पर निर्भर है। टीवी चैनल की बाइटों में एक व्यक्ति के दाँतों से किटकिटाती आवाज़ का स्वर और कही गई बात- ‘ अगर फलाँ नेता मेरे हाथ लग जाए, तो मैं अभी उसे मौत के घाट उतार दूँ ’ , या फिर ‘ फलाँ नेता पर तो जूते चप्पल चलने चाहिये ’ । स्याही फेंकने, जूता फेंकने, थप्पड़ मारने से अगर स्वराज आता तो नए 2000 के नोटों में गाँधी की तस्वीर की जगह गोलियाँ हाथ में लिये गोडसे होते। आपको पता है, कौन लोग हैं ये या किस विचारधारा से आते हैं ? ये उस विचारधारा से आते हैं, जिस विचारधारा से निर्भया काण्ड करने वाले अपराध...

Is the pace of Growth and Development determined by the Quality of Governance?

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क्या विकास और प्रगति की गति, शासन की गुणवत्ता पर निर्भर करती है ? बदल रही है ज़िन्दगी, साल बदल रहे हैं। बदल रहा है देश, यहाँ के हाल बदल रहे हैं। लेकिन नहीं बदल रहे हमारे सामने, कुछ पुराने बवाल आज भी हैं। ज़िन्दगी तो गुज़र रही है रफ़्ता रफ़्ता, लेकिन कुछ तीख़े सवाल आज भी हैं।             पिछले सत्तर सालों में भारत में होने वाले परिवर्तन का सीधा असर हमारी विचारधाराओं से होता हुआ चर्चाओं और बहसों तक हुआ है। आज से दस साल पहले, बीस साल पहले हम चर्चा किया करते थे कि क्या गरीबी सच में कम हुई ? क्या प्रशासन अपना काम नहीं कर रहा है ? लेकिन आज हम उस मुहाने पर खड़े हैं, जहाँ से विकास और प्रगति का पथ प्रशस्त होता साफ़ दृष्टिगोचर होता है।       अगर आप मुझसे पूछिये कि क्या विकास और प्रगति की गति, शासन की गुणवत्ता पर निर्भर करती है ? तो मैं कहूँगा हाँ, निश्चित रूप से ; विकास व प्रगति तय करने में शासन का महत्त्वपूर्ण योगदान है।       लेकिन मैं आपसे पूछना चाहता हूँ, कि क्या सिर...