Love Poetry at mid night

Love Poetry


पहला इश्क जो होता है, बस हो ही जाता है।
मन ख्वाबों में जो खोता है, बस खो ही जाता है।

रातों में, बातों में, कलम को थामे हाथों में।
बस ज़िक्र तुम्हारा होता है।
आख़िर ये क्यों होता है।
तुम बिन मन क्यों रोता है।
मैंने तो बड़ों से सीखा है,
कि विरह प्रेम का अवयव है।
जो इनसे लड़कर जीत गया,
वही तो सच में मानव है।।
पर रातों के काले सन्नाटे,
      तेरी आवाज़ सुनाते हैं।
चाँद पे बादल के घेरे,
 तेरा चेहरा दिखलाते हैं।
जब अन्दर का खालीपन,
      अन्तर को अन्दर से डँसता है।
इनको पाकर हम जो लिख दें,
      वो महफ़िल को बतलाते हैं।

वो सहज हँसी, वो अल्हड़पन,
      तिरछी नज़रें, वो पागलपन।
मेरे मन का मानव भी,
      तुमको पाकर ज्यों खोता है।
      बस ज़िक्र तुम्हारा होता है।
      बस ज़िक्र तुम्हारा होता है।।

      मंगलम् भारत




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