मेरा पत्रकारिता अनुभव
मेरा पत्रकारिता अनुभव
बी. टेक. प्रथम वर्ष के बाद
गर्मी की छुट्टियां शुरू हो गई थीं, सारे लड़कों के व्हॉट्सएप्प पर घूमने फिरने,
मौज करने की तस्वीरें और स्टेटस पड़े हुए थे, लेकिन मैं अपने ही मद में मस्त था।
सुबह 7 बजे उठना, पानी भरना, नहाना, मम्मी को दवाई देकर 10 बजे टैंपो का जुगाड़
ढूंढते हुए KNEWS के दफ़्तर पर अपने वेब मीडिया के करिया कंप्यूटर पर आ जाना।
सुबह 10:30 का शुरू हुआ खेल
सामान्यतः 6:30 तक तो चलता ही था। कभी-कभी तो 7:30 भी हो जाता था, एक बार तो 8:15 भी हो गया था। दिन भर में पाँच सौ ख़बरें, सैकड़ों
ट्वीट्स पढ़ो, अपनी भाषा में ढालो और लिख दो लेख। जब स्वामी प्रसाद मौर्य ने
पार्टी छोड़ी थी, तो मेरी लिखी स्लग, शाम छः बजे की डिबेट की हेडिंग बनी “मोह की माया से निकले स्वामी”। यह मेरे इंटर्नशिप का
सबसे महत्त्वपूर्ण पल था। मैं तभी से शायद शेष इंटर्न से बेहतर माना जाने लगा था।
उसका एक कारण ये भी हो सकता है कि इंटर्नशिप करने वालों में लड़कियों की संख्या
ज़्यादा थी, जबकि लड़के एक आध ही थे। सच मानिये, बी. टेक. के लड़के को मास कॉम की
लड़कियों का इतना भाव कभी नहीं मिला, जितना मुझे मिल रहा था। इसलिये मेरा भी
भौंकाल एकदम टाइट था। बिल्कुल गोपियों के साथ कृष्ण कन्हैया वाली फ़ीलिंग आ रही
थी। और वैसे भी, बी. टेक. के लड़के ऐसे माहौल को पाने के लिये तरसते हैं। ख़ैर, अब
आता हूँ इंटर्नशिप पर। जब नया नया आया था, तो लगभग एक हफ़्ते में ही वेब का सारा
काम सीख गया था। फ़ेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब; बस
वेबसाइट का काम नहीं सिखाया था। कहते हैं कि वेबसाइट का काम नए लड़के को नहीं देना
चाहिये, नहीं तो खेल बिगड़ भी सकता है।
अब थोड़ी सी बात ख़बर के विश्लेषण की भी कर लेते हैं, जो शायद किसी
भी अख़बार, न्यूज़ चैनल चलाने का सबसे महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। किस ख़बर को कितना
महत्त्व देना है, किसी ख़बर के कितने रंग होते हैं, उसको कितने नज़रियों से देखना
चाहिये और सबसे सटीक नज़रिया कौन सा होगा। जब मैं लिखने का काम कर रहा था, तो पीछे
ब्रेकिंग न्यूज़ का डिपार्टमेंट भी था, जिसने ख़बर की महत्ता समझाने में मेरी मदद
की। इसमें राहुल सर का बहुत योगदान है। ब्रेकिंग की ख़ास बात यह है कि उसे लिखा नहीं
जाता, फायर किया जाता है। आप जितना भी नीचे ब्रेकिंग न्यूज़ वाला सिस्टम देखते
हैं, वो फायर किया जाता है। इस काम में ऐसे बंदे को बिठाया जाता है, जिसकी टाइपिंग
में, अशुद्धियाँ न हों और ख़बर को महत्ता देने की समझ हो। कभी-कभी मैं शाम को वहाँ
भी बैठ जाता था। व्हॉट्सएप्प पर रिपोर्टर ने ख़बर भेजी, उस पर चार स्लग लिखकर
ब्रेकिंग फायर कर दी। बहरहाल, अभी तक मुझे
फ़ेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब का पूरा काम मैं ही सँभाल रहा था और वेबसाइट के लिये
मैंने कागज़ पर लिख-लिख कर सौरभ सर को पकड़ाना भी शुरू कर दिया था। वेबसाइट पर व्यूज़
बढ़ाने के लिये हेडिंग बहुत दमदार होनी चाहिये। “खेल खेल में दिल्ली से बनारस”, “मोह की माया से निकले
स्वामी”, “मायावती के नहले पर स्वाति का दहला”, जैसी कई सारी हेडिंग्स सौरभ सर को बहुत पसन्द
आईं। ये सभी हेडिंग्स, वेबसाइट में भी लिखीं गईं। मेरी अच्छी कट रही थी। एंकरिंग
करना एक अच्छे वक्ता का सबसे बड़ा पैशन होता है। मैं कम से कम एंकर्स को लाइव
एंकरिंग करते हुए देखना चाहता था, ये मौका नहीं मिला, इस बात का अफ़सोस है। धन्यवाद!
मंगलम् भारत