नए साल का पहला निर्दयी सोमवार
साथियों! आज मैं आपसे एक गहन गम्भीर विषय पर बात करना चाहता हूँ और यह विषय है आलस। आलस क्या है?? आलस एक तपस्या है। जैसे रोज़ नहाने वाले लोग ठंडी के मौसम में जल संरक्षण के फ़ायदे नहीं जान पाएँगे, ठीक वैसे ही ये मेहनतकश दुनिया कभी नहीं जान सकेगी कि आलस का ईश्वरीय दर्शन से गहरा नाता है। आलस परमसुख है। एक आलसी व्यक्ति को इंस्टाग्राम डिगा नहीं सकता, फ़ेसबुक बहला नहीं सकता, ट्विटर फुसला नहीं सकता। जाड़े के महीनों में या फिर एक थके हुए वीकेंड के बाद सोमवार की सुबह यह अपने चरम स्तर पर होता है। इस कठिन दौर में एक आलसी व्यक्ति ही पहले अलार्म को बन्द करने के बाद ‘बस पाँच मिनट और’ का वो गहरा... सुकून भरा... आरामदायक... सुखद आनंद महसूस कर सकता है। इस सुख को वो क्या जानें जो पहले ही अलार्म में उठ जाते हैं या वो... जो केवल एक ही अलार्म लगाते हैं। नए साल के इस पहले निर्दयी सोमवार यानि आज मैं आपको एक कहानी सुनाना चाहता हूँ।
.
ये कहानी कई बरस पुरानी है। कर्णपुर (आज का कानपुर) में एक राजा हुआ करता था, महाराजा सुविधी। अपने इलाक़े में उसका बड़ा प्रभाव था, नवाबगंज के गंगा बैराज से लेकर घंटाघर के रेलवे स्टेशन तक में उसके ख़ूब चर्चे थे। एक बार उसका जी चाहा, कि क्यों न राज्य में सबसे आलसी व्यक्ति को ढूँढ़ा जाए और उसे पुरस्कृत किया जाए। उसने अपने समस्त मंत्रियों को सबसे आलसी व्यक्ति की तलाश करने के लिए आदेशित किया। जैसे ही नगर के लोगों को इसके बारे में पता चला तो वे आलसी होने का फ़र्ज़ी नाटक करने लगे। लेकिन राजा के मंत्री भी कम चतुर नहीं थे, कभी उनको लड्डू, पेड़े, गुलाब जामुन तो कभी गर्म चाय का झूठा लालच देकर उनसे आलस तुड़वा देते। ये सब करामातें करने के बाद भी उनको तीन ऐसे लोग मिले, जो इन फ़र्ज़ी लालचों से टस से मस न हुए। अपनी जगह पर ही डटे रहे। तो राजा ने मंत्रियों से कहा, कि इनको महल में बुलाओ, हम इन्हें पुरस्कार में नया नर्म गद्देदार बिस्तर देंगे। जैसे ही उनको ये सूचना मिली, तो उनमें से दो लोग तो राजा के दरबार में भागे-भागे पहुँचे। राजा ने दोनों को गद्देदार बिस्तर दिलवाए। आख़िरी व्यक्ति का अभी भी कोई अता-पता नहीं था। राजा को उसके मंत्री ने बताया कि वो तो अपने घर में खाट पर लेटा हुआ मस्त धूप सेंक रहा है। आपके आदेश पर तो कोई रिएक्शन भी नहीं दिया महाराज।
.
राजा एकदम प्रसन्न हो गया। राजा ख़ुद अपने घोड़े पर उसके घर आया। देखा, तो वो अभी भी मस्त धूप सेंक रहा था। राजा ने कहा, मैं तुम्हारी इस तपस्या को देखकर प्रसन्न हुआ, कहो क्या माँगते हो। उसने कहा, राजा जी, बस दो कदम इधर हो जाओ, तुम्हारे कारण धूप नहीं आ रही है।
.
जैसा कि मैंने बताया, कि आलस एक तपस्या है। अथक नींद के साथ ही इसे हासिल किया जा सकता है। परिश्रम तो बोलने में है, लेकिन आलस में लिए गए मौन के परमार्थ का आनन्द विरले ही समझ पाते हैं। इसे इंस्टाग्राम डिगा नहीं सकता, पानी भिगा नहीं सकता, हवा सुखा नहीं सकती। भगवान कृष्ण ने आत्मा के जो गुण बताए हैं, वो सारे के सारे आलस में मौजूद है। मेरी मानो, तो सोलमेट को पत्नी के पर्यायवाची से हटाकर आलस का पर्यायवाची बना देना चाहिए। ऐसे ही प्राणप्रिय को पति के पर्यायवाची से निकालो और आलस में जोड़ दो। शादी-वादी फालतू की चीज़ें हैं क्योंकि सही मायने में ये आलस ही तो है, जो सात जन्मों तक साथ निभाता है, सुख में पीछे रहता है, लेकिन दुःख में आगे आ जाता है, जन्म से लेकर मृत्यु तक हमेशा रहता है और कभी साथ नहीं छोड़ता।
.
इसीलिए मॉडर्न युग में कबीर कहत है-
“गोधन, गजधन, वाजिधन और रतनधन खान।
जब आवे आलस्य धन, सब धन धूरि समान।।“
- मंगलम् भारत